Ayodhya Ram Mandir: अयोध्या के राम मंदिर में स्थापित रामलला की मूर्ति मैसूर के शिल्पी योगीराज ने बनाई
Ayodhya Ram Mandir:
अयोध्या में प्रभु राम मंदिर में स्थापित रामलला की मूर्ति मैसूर के शिल्पी योगीराज ने बनाई थी।
जिस तरह रामलला की प्राण प्रतिष्ठा काशी के वेद मूर्तियों ने कराई उसी
तरह मूर्ति के लिए स्वरूप की कल्पना भी काशी के ही एक चित्रकार ने की है।
इस कलाकार के बनाए चित्र को ही मूर्तिकारों ने विग्रह रूप दिया। इ
सके बाद अरुण योगीराज ने प्रतिमा बनाई थी।
यह चित्रकार काशी विद्यापीठ के ललित कला विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुनील कुमार विश्वकर्मा हैं।
विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद डॉ. विश्वकर्मा ने अपने बनाए चित्र और इसकी कहानी साझा की है।
Picture of five year old Ramlala: देशभर के 82 नामीगिरामी चित्रकारों से पांच वर्ष के रामलला का चित्र मांगा
डॉ. विश्वकर्मा ने बताया कि फरवरी-2023 से इसकी तैयारियां शुरू हुई थीं।
देशभर के 82 नामीगिरामी चित्रकारों से पांच वर्ष के रामलला का चित्र मांगा गया था।
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट की तरफ से इनमें से अंतिम तीन चित्रों का चुनाव किया गया।
डॉ. सुनील कुमार विश्वकर्मा के बनाए स्केच के अलावा महाराष्ट्र और पुणे के दो अन्य वरिष्ठ कलाकारों के स्केच शामिल थे।
डॉ. विश्वकर्मा ने बताया कि 15 से 20 अप्रैल के बीच उन्हें अन्य दोनों कलाकारों के साथ नई दिल्ली बुलाया गया।
Childlikeness and leadership: चेहरे पर साथ दिखानी थी बालसुलभता और नेतृत्व
वाराणसी, वरिष्ठ संवाद दाता।
भगवान राम जन-जन के आराध्य हैं।
रामायण सहित कई पौराणिक ग्रंथों में भगवान राम की देहयष्टि की जानकारी तो है मगर राजीवलोचन प्रभु के चेहरे के बारे में कम ही बातें हैं।
ऐसे में चित्र बनाने से पहले मनन और मंथन काफी हुआ।
चित्रकार डॉ. सुनील कुमार विश्वकर्मा बताते हैं कि पांच वर्ष की अवस्था के प्रभु की तस्वीर बनानी थी।
चेहरे पर बालसुलभता के साथ नेतृत्व भी दिखाना था।
मंदिर न्यास के महासचिव चंपत राय और कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद देव गिरी ने चित्र को लेकर कई निर्देश दिए थे।
अंतिम चुनाव के बाद भी चित्र में कुछ बदलाव करने पड़े।
डॉ. विश्वकर्मा बताते हैं कि चित्र में सबसे अहम था चेहरे के भाव प्रदर्शित करना।
मंदिर पदाधिकारियों ने कहा था कि भगवान राम में हमेशा सत्य, करुणा, समरसता और शुचिता का भाव रहा है।
एक चित्रकार के रूप में डॉ. विश्वकर्मा ने पांच वर्ष के बालक के बचपन के साथ ही प्रभुराम का देवत्व भी इसी तस्वीर में समेटना था।
उन्होंने बताया कि इसके लिए गहन मंथन और ग्रंथों का अध्ययन किया।